रवा राजपूतों के बारे में।
457 वर्षों (सन 736 से 1193 ई.) तक दिल्ली पर तवंर वंशीय राजपूत (Rajput) राजाओं का आधिपत्य था। सम्राट कुमारपाल देव तंवर (सन् 1021-1051) ने राष्ट्र - सुरक्षा के लिए आसपास की राजपूत रियायसतों की एक संयुक्त सेना या राजपूत संघ का गठन किया था जिसका उद्देश्य बाहरी अथवा आंतरिक आक्रमण के समय सभी राजपूतों को संगठीत रखना था। इस राजपूत फौजी संगठन का नाम “राजपूत वाहिनी दल” रखा गया जिसे “रावाद” भी कहते थे।
इसकी मान प्रतिष्ठा एवं शोर्य के कारण इस संगठन में सम्मिलित सभी राजपूत सैनिक, सामन्त, भूनाथ, जागीरदार व उनके सम्बंधी अपने को “रावाद” राजपूत कहलाने में गौरव अनुभव करते थे। यह रावाद कालांतर में रवा बन गया, जो इन राजपूतों का विशेषण है। अब ये समस्त क्षत्रिय समाज में रवा राजपूत के नाम से जाने जाते हैं।
रवा (रया) राजपूत भारतीय राजपूत जाति का एक उप-समूह है । ये क्षत्रिय वंशी है और इन्हे ऊची जाति के रूप मे पहचान प्राप्त है। रवा राजपूत अपने को तंवर तथा चौहान जैसे शाक्तिशाली राजवंशो के वंशज अथवा उनके संगठन का सदस्य होने का दावा करते हैं।
राजपूत जाति के कुल 36 राजपूत राजवंशों में से केवल 6 राजवशं, गहलोत, कुशवाहा, तंवर, यदु, चौहान और पंवार ही रवा राजपूत उप-समूह मे पाये जाते है।
रवा राजपूत में सामिल छ राजवंश तथा उनकी शाखाऐं
- सूर्यवंश से उत्पन्न दो राजवंश गहलोत तथा कुशवाहा । गहलोत राजवंश का गोत्र वैशम्पायन है तथा कुशवाहा राजवंश का गोत्र मानव या मनू है
- चंद्रवंश से उत्पन्न दो राजवंश तॅवर तथा यदुवंश । तॅवर राजवंश का गोत्र व्यास है तथा यदु राजवंश का गोत्र अत्रि है
- अग्निवंश से उत्पन्न दो राजवंश चौहान तथा पंवार । चौहान राजवंश का गोत्र वत्स या वक्च्हस है तथा पॅवार राजवंश का गोत्र वशिष्ठ है
उपरोक्त 6 राजवंशो को बाद में अपनी जरूरत के अनुसार कुछ शाखाओं में विभाजित किया गया और इन शाखाओं को जाने अनजाने में विवाह संबध बनाने के लिए गोत्र के रूप में प्रयोग करने लगे है। इसके कारण इस जाति में अंर्तगौत्रीय विवाह से होने वाले नुकसान की आशंका बढ रही है। प्रचलित शाखाऐं या गोत्र इस प्रकार है:
- गहलोत वंश की शाखाऐं या गौत्र:- गहलोत, अहाड, बालियान, व ढाकियान
- कुशवाहा वंश की शाखाऐं या गौत्र:- कुशवाहा, देशवाल, मानव, कौशिक व करकछ
- तॅवर वंश की शाखाऐं या गौत्र:- तंवर, सूरयाण, भरभानिया, व्यास, माल्हयाण, सूमाल, बहुए, रोझे, रोलियान, चौवियान, खोसे, छनकटे, चौधरान, ठकुरान, पाथरान, गंधर्व, कटोच, बीबे, पांडू, झब्बे, झपाल, संसारिया व कपासिया
- यदु वंश की शाखाऐं या गौत्र:- यदु, पातलान, खारीया/ इन्दारिया, छोकर, व माहियान
- चौहान वंश की शाखाऐं या गौत्र:- चौहान, खारी या खैर, चंचल, कटारिया, बूढियान, बाडियान या बाढियान,गरूड या गरेड, कन्हैडा या कान्हड, धारिया, दाहिवाल, गांगियान, सहचरान व माकल या माकड या भाकड या बाकड
- पंवार वंश की शाखाऐं या गौत्र:- पंवार, टोंडक, वाशिष्ठान, ओजलान, डाहरिया, उदियान या उडियान, किरणपाल व भतेडे
रवा राजपूतों के मूल निवास
- गहलोत वंशी रवा राजपूतों का निकास गुजरात के बल्लभीपुर से है। इनके मूल ठिकाने चितौड तथा अहाड प्रदेश रहे है
- कुशवाहा वंशी रवा राजपूतों के मूल ठिकाने राजस्थान के राजौर, आमेर व अमरसर थे। ये अपने वर्तमान ठिकाने से पहले पंजाब के नरवरगढ भी रहे थे।
- तॅवर वंशी रवा राजपूतों का निकास इन्द्रप्रस्थ व चंबल क्षेत्र से है। इनके मूल ठिकाने दिल्ली में नारायणगढ, मक्सूदाबाद, ज्वालाहेडी, अनंगपुर (वर्तमान महरौली), सढौरा खुर्द, संढौरा कलां, हरियाणा में गोपालगढ तथा राजस्थान में पाटन व तारागढ रहे हैं।
- यदु वंशी रवा राजपूतों का निकास मथुरा से है। राजस्थान के भदानक प्रदेश में विजय मन्दिर बयाना इनका मूल ठिकाना है।
- पंवार वंशी रवा राजपूतों का निकास राजस्थान में आबूपर्वत के पास अचलगढ से है तथा मूल ठिकाना मध्यप्रदेश में धारा नगरी, राजस्थान में कलानौर, तानतपुर व चन्दावती तथा हरियाणे में सावड रहे है।
- चौहान वंशी रवा राजपूतों का निकास राजस्थान के साम्भर प्रदेश से है। इनके मूल ठिकाने राजस्थान में शाकम्भरी झील, अजमेर, धोलकोट, नीमराणा व हर्षनाथ रहे हैं।